Monthly Archives: March 2018

क्या है विश्वगुरु भारत अभियान?

प्रस्तावना

(हिंदी-साहित्य के आधुनिक काल के प्रवर्तक माने जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चंद्र (१८५०-१८८५ ई.) से बहुत पहले महाकवि संत गंगादास (१८२३-१९१३ ई.) ने संस्कृत-निष्ठ हिंदी में विपुल साहित्य की रचना की है. गंगादास खड़ी बोली क्षेत्र (भारत की राजधानी दिल्ली क्षेत्र ) के लोक जीवन से गहरे जुड़े हुए थे, अतः इनके काव्य में यहां की भूमि की सौंधी खुशबु विद्यमान है. मुहावरे, लोकोक्तियों वर अन्य लोकतत्वों से भरपूर इनकी भाषा एक और कृत्रिमता से दूर और सहज है, वहीँ दूसरी ओर संस्कृत काव्य-शास्त्रों के मर्मज्ञ होते हुए इन्होंने संस्कृत के शब्दों का प्रचुर उपयोग करते हुए लोक व्यवहार में संस्कृत की संवाहिनी भाषा का एक महत्वपूर्ण आविष्कार किया जिसकी तुलना शुन्य, ज्यामिति, ज्योतिष, आयुर्वेद, योग, वास्तु  जैसे अन्य कालजयी आविष्कारों से की जा सकती है. इस भाषा ने एक ओर उस कालखंड के प्रचलित अरबी, फ़ारसी एवं उर्दू भाषा के शब्दों को समाहित किया परन्तु अब और आने वाले समय में यह अंग्रेजी, चीनी, स्पेनिश, पुर्तगाली, रूसी, जापानी, अफ़्रीकी जैसे अन्य भाषाओँ को भी समाहित करते हुए संस्कृत की संवाहिनी विश्व भाषा के सबसे उपयुक्त साबित हो सकती है. आगे चलकर यह लोक-संस्कृत विश्व संस्कृति के विकाश के क्रम में सभी भाषाओँ की जननी शास्त्रीय-संस्कृत में समाहित हो सकती है.
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इस दृष्टि से विश्वगुरु भारत अभियान की संवाहिनी भाषा लोक-संस्कृत ही शोषणकारी एवं अनेक षड्यंत्रों से लिप्त वैश्विक उपनिवेशवाद की भाषा अंग्रेजी का स्थान ले सकती है. मानव सभ्यता के विकाश क्रम में यह एक नए युग का आगाज़ है. इस पृष्ठभूमि से विश्वगुरु भारत अभियान की यह प्रस्तावना लोक-संस्कृत में लिखी जा रही है.)

विश्वगुरु भारत – क्यों और कैसे?

जब परिवार और स्थानीय समाज बचेगा तभी व्यक्ति का अस्तित्व सुरक्षित एवं संवर्धित हो सकता है.  जब देश सुरक्षित एवं समृद्ध होगा तभी परिवार बचेगा. सामान्यतः आधुनिक काल में हमारी यह मान्यता रही है. इस दृष्टि से व्यक्तिवाद एवं संकीर्ण राष्ट्रवाद के दौर में हमारा ध्यान परिवार, स्थानीय समाज और देश तक सीमित रहा है.
परन्तु गौर से देखें तो वास्तविकता कुछ और ही दर्शाती है. विश्व के अनेक देशों के विचारकों से पिछले एक दशक से हो रही बातचीत के आधार पर यह पुष्ट है कि पर्यावरण संकट, परमाणु अस्त्र की होड़ एवं विभिन्न देशों के बीच बढ़ रहे आपसी तनाव, आतंकवाद एवं वैमनस्य से विनाशकारी परमाणु युद्ध का संकट एवं अंधाधुंध प्रदूषणकारी औद्योगीकरण में सनी हुयी आर्थिक साम्राज्यवाद की होड़ में जल, जंगल, जमीन जन एवं जानवर के संसाधनों का तेजी से विलोप आज और आने वाले समय के लिए स्पष्ट संकेत कर रहा है. यदि विश्व सुरक्षित, परस्पर सुव्यवस्थित  एवं शांत होगा तभी स्थानीय समाज भी सुरक्षित, सुखी और संपन्न रह सकता है. ताजे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि विश्व की सबसे शक्तिशाली सामरिक शक्तियों – अमेरिका, रूस एवं चीन के आपसी संबंधों में उबाल आ रहा है तथा सीरिया, इराक, उत्तरी कोरिया जैसे कई क्षेत्रों में तनाव की स्थिति बनी हुयी है.
ऐसी स्थिति में सदियों से विश्व गुरु माने जाने वाले भारत का क्या दायित्व है?

स्पष्ट है कि १९४७ में भारत की अधकचरी स्वतंत्रता एवं थोपे-थापे गए उपनिवेशवादी संविधान की अनेक विसंगतियों एवं विरोधाभासों के बोझ से दबी, कुचली और अधमरी-सी आधुनिक इंडिया नामक राष्ट्र-राज्य का नेतृत्व एवं इसकी भ्रष्ट शासन प्रणाली भारत के विश्व गुरु के दायित्व के निर्वाहन करने में पूर्णतया असक्षम है. उलटे यह इंडिया सरकार, भारतीय समाज के चंद पूंजीपति वर्ग तथा विदेशी ताकतों के चंगुल में आकर कुपोषण, भुखमरी, आर्थिक विषमता, बेरोजगारी में विश्व समुदाय के सभी देशों में अंतिम पायदानों पर जूझते एवं शिक्षा, स्वास्थ्य एवं न्याय व्यवस्था के गिरते स्तर के बावजूद, अभी भी सामान्य जनता का शोषण कर रही है. इतना होने के बावजूद भी आज भी यह सच है कि भारत की मनीषा शक्ति जीवित है और इतनी भारी अंदरूनी चुनौतियों से जूझते हुए भी यह सदियों के ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर इसमें भारत एवं विश्व के दिशाहीन शासन तंत्र के शोधन में सक्षम है.

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विडम्बना यह है कि आधुनिक भारत यानी इंडिया की सीमाओं में कुंठित होने के बजाय विश्व पटल पर अपने खोयी हुयी पहचान, सम्मान और गौरव को स्थापित करना होगा और यह राष्ट्रवाद के संकीर्ण एवं संकुचित मर्यादाओं को तोड़ना होगा. इसके लिए उपयुक्त मंच वर्त्तमान परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र महासंघ एवं विश्व स्तरीय मेधा शक्ति है जो भारत से ही निकल कर विश्व के अनेक भागों में फैली है.

ऐसे में हमें विश्व की वर्त्तमान परिस्थिति का समग्रता एवं सम्पूर्णता से आकलन करते हुए विकल्पों को तलाशने की पुरजोर आवश्यकता है. इस कड़ी में सबसे पहले भारतीय परंपरा में राजनीति शब्द को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है ताकि इंडिया के भ्रष्ट, धूर्त एवं शोषणकारी आधुनिक राजनेताओं के व्यवहार से जन-सामान्य एक बार फिर से राजनीति को सम्मान एवं गौरव की दृष्टि से देख सके.

राजनीति क्या है?

सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवापरायण और स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की सुखद संरचना राजनीति है. राजधर्म, दंडनीति, तथा अर्थशास्त्र राजनीति का ही नामांतर है.

महाभारत, मत्स्यपुराण, मार्कण्डेयपुराण एवं अग्निपुराणादि के अनुसार धर्मनियन्त्रित, पक्षपातविहीन, शोषणविनिर्मुक्त, सर्वहितप्रद शासनतंत्र की स्थापना के लिए सनातन संस्कृति के अनुरूप संविधान और उसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है.

सनातन संस्कृति में आस्थान्वित महानुभाव इसका अनुशीलन कर संपूर्ण विश्व के नेतृत्व एवं शासन की संरचना में स्वस्थ भूमिका प्रस्तुत करें.
भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार एवं विश्व की सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र महासंघ के तत्वाधान में उसकी महासभा द्वारा २००७ में पारित घोषणा पत्र United Nations Declaration for Rights of Indigenous People के अंतर्गत भारत के मूल निवासियों को यह अधिकार प्राप्त है कि वे चक्रवर्ती सम्राट के पद को पुनः स्थापित कर सकते हैं. इस से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र के इस घोषणा पत्र में जिसमें भारत सरकार भी हस्ताक्षरकर्ता है इस प्रकार से हैं:

अनुच्छेद 3
आदिवासियों को स्वाधीनता का अधिकार है। इस अधिकार के तहत वे स्वतंत्र रूप से अपने राजनीतिक स्थिति तय कर सकते हैं एवं अपने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं।

अनुच्छेद 4
आदिवासियों को उनके आंतरिक और स्थानीय मामलों में एवं उनकी वित्तीय व्यवस्था के लिए, स्वायत्तता या स्वशासन का अधिकार है।

अनुच्छेद 5
आदिवासियों को, उनके विशेष राजनीतिक, कानूनी, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थानों को बनाए रखने और मजबूत करने का अधिकार है. इसके साथ साथ, यदि वे चाहें तो (वर्त्तमान) राज्य के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी पूरी सहभागिता कर सकते हैं। क्या चक्रवर्ती सम्राट की भारतीय परंपरा ही विश्व नेतृत्व संकट का समाधान है? इससे पहले अनेक प्रकार के मिथकों एवं भ्रांतियों से उबरते हुए हमें इसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को स्पष्टतः समझते हुए  वर्त्तमान एवं भविष्य में चक्रवर्ती सम्राट की प्रासंगिकता एवं भूमिका पर परिचर्चा करने की आवश्यकता है.

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चक्रवर्ती सम्राट कौन और क्या होता है? – ऐतिहासिक परिदृश्य

पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे :- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।

इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। इस भरत खंड के भी नौ खंड थे-  इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।यह भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमामान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।

इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे।

‘चक्रवर्ती’ शब्द संस्कृत के ‘चक्र’ अर्थात पहिया और ‘वर्ती’ अर्थात घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार ‘चक्रवर्ती’ एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर समय घूमता रहता हो और जिसके रथ को रोकने का कोई साहस न कर पाता है।
जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन माना लिया जाएगा। जम्बूद्वीप और भारत खंड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे ‘चक्रवर्ती’ लगाया जाता है, जैसे वैवस्वत मनु, मान्धाता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरीशचन्द्र, सुदास, रावण, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही ‘चक्रवर्ती’ कहा जाता था लेकिन कालांतर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बांधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।

विश्वगुरु भारत एवं चक्रवर्ती सम्राट की प्रासंगिकता एवं भूमिका

आज की परिस्थिति में चक्रवर्ती सम्राट को फिर से विश्व शासन का दायित्व स्वीकार करना होगा और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के मंच पर वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व को पुष्ट करना होगा ताकि सम्पूर्ण विश्व चक्रवर्ती सम्राट के नेतृत्व को स्वीकार कर सके. इसके लिए उसे तर्कशास्त्र, धर्मशास्त्र एवं दण्डनीति में निपुण होने की आवश्यकता है ताकि वह साम, दान, दंड एवं भेद के प्रयोग से पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोते हुए सुशासन कर सके और उसपर पर्यावरण के विनाश, परमाणु युद्ध, अतिभोगिता, प्रदूषित एवं विषैली जीवनशैली को फैलाने वाले आर्थिक साम्राज्यवाद से उत्पन्न संकटों से विश्व को उबार सके और शान्ति, समृद्धि, समरसता एवं खुशहाली के राह पर अग्रसर कर सके.

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इस प्रस्तावना पर आप सबके विचार एवं सुझाव जानने के लिए रविवार ८ अप्रैल, २०१८ को प्रातः ८ बजे से २ बजे तक होने वाले विश्वगुरु के प्रारम्भिक प्रस्तावना सत्र में  भारत के मनीषी, विद्वत  एवं विचार शक्ति के रूप में  आप सभी महानुभावों का हार्दिक आमंत्रण है. बैठक का स्थान संत गंगादास की स्मृति में स्थापित महाकवि गंगादास सरस्वती शिक्षा मंदिर, ग्राम रसूलपुर (गंगादास धाम), तहसील एवं जिला हापुड़ में रखा गया है. कुचेसर रोड चौपला से २ किमी की दूरी पर है.

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इस विश्वव्यापी अभियान के अगले चरण में भारत की राजधानी दिल्ली में ३-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी २४-२६ अप्रैल, २०१८ को आयोजित की जायेगी. इसमें विश्वभर के  अनेक विचारधाराओं को समाहित करने की दिशा में भारत के साथ-साथ अनेक देशों – चीन, रूस, यूरोप, कनाडा, न्यू ज़ीलैण्ड, नेपाल, बांग्लादेश और अमेरिका की मनीषा शक्ति को आधुनिक संचार से जोड़ा जाएगा और इसका विश्व भर में सीधा प्रसारण किया जाएगा।

(महाकवि संत गंगादास द्वारा १९११ में दिल्ली राजधानी के उद्घाटन का प्रसंग – जब १९११ में भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हुयी तो उस समय की ब्रिटिश सरकार ने भारत के अनेक राज परिवारों को नयी राजधानी के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित किया था. उसी समारोह में कुचेसर राज्य के राजा के साथ सफ़ेद घोड़े पर सवार महाकवि संत गंगादास भी आये. ओजस्वी व्यक्तित्व के गंगादास जी के परिचय के पश्चात उपस्थित सभा ने उनसे कविता सुनाने का निवेदन किया. गंगादास जी ने इन पंक्तियों से उपस्थित सभा को सम्बोधित करते हुए अपना परिचय दिया.

इन्द्रप्रस्थ खेड़े की चर्चा सुन लो धर के ध्यान
जींद और जम्बू नाभा पटियाला के महाराज
फरीदकोट राजा आये जिनका नया नया साज
झाला पाटन वाले की उम्र थी बहुत ही बाली
सोहनी थी सूरत जिसके मुखड़े पे दमके लाली
बामना बड़ौदा आय लिया अजमेर
इन्द्रप्रस्थ खेड़ा फिर से लिया दलों ने घेर
इन्द्रप्रस्थ खेड़े की चर्चा सुन लो धर के ध्यान
भरतपुर वालों की दिल्ली में बिछी थी मेज
कंपनी बहादुर जिसकी कदर करें अंग्रेज
राजा के कुचेसर से तीन कोस पश्चिम में है गांव मेरा
लोग कहें “गंगादास” मूढमति नाम मेरा
समय पर ही करते आवें साधु और संत फेरा
 …रोज रोज मत जान
इन्द्रप्रस्थ खेड़े की चर्चा सुन लो धर के ध्यान।

इससे मन्त्र-मुग्ध और प्रभावित होकर समारोह के आयोजकों ने महाकवि संत गंगादास के कर-कमलों से ही भारत के नए राजधानी का उद्घाटन कराया। इस समारोह के १०८वें वर्ष में यह एक सुखद संयोग है की हम विश्वगुरु भारत अभियानका का शुभारम्भ गंगादास धाम (रसूलपुर) में उन्हीं के जन्मस्थली से कर रहे हैं.)

सन्दर्भ:

१. व्लादिमीर पुतिन: अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था ‘स्वयं का भक्षण कर रहा है’
https://www.cnn.com/2018/03/07/europe/putin-trump-us-political-system-intl/index.html
२. क्या अमेरिका चीन के साथ परमाणु युद्ध की तैयारी कर रहा है?
http://nationalinterest.org/blog/the-buzz/america-preparing-nuclear-war-china-24753
३.  वैज्ञानिकों ने जेट स्ट्रीम को स्थानांतरित करने पर ‘वैश्विक जलवायु आपातकाल’ की चेतावनी दी है
http://www.independent.co.uk/news/science/climate-change-emergency-jet-stream-shift-warning-global-warning-extreme-weather-a7111661.html
४.  सीरिया के रासायनिक हमलों के दावों के बीच फ़्रांस के प्रतिक्रिया का खतरा
https://www.aljazeera.com/news/2018/03/syria-video-phosphorous-bomb-attacks-ghouta-180308133727016.html
५.  संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंगीकृत संकल्प-पत्र : आदिवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का घोषणा पत्र 61/295  13 सितम्बर 2007
http://www.un.org/esa/socdev/unpfii/documents/DRIPS_en.pdf
६. ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’. लेखक डॉ मान सिंह वर्मा. भारत भारती प्रकाशन मेरठ से प्रकाशित.
क्रमशः : सहस्र समस्याओं का समग्र समाधान – स्वदेशी से स्वावलम्बन

संयोजक
विश्वगुरु भारत अभियान

चंद्र विकाश
दूरभाष: ९५८२९४१३८२
ईमेल: chandra.vikash@gmail.com
कर्मवीर सिंह
दूरभाष: ९४५६२५४१८३
karmvir114@gmail.com
कुचेसर कार्यालय:
महाकवि गंगादास सरस्वती शिक्षा मंदिर
ग्राम रसूलपुर (गंगादास धाम), कुचेसर रोड चौपला के पास,
तहसील एवं जिला हापुड़, उत्तर प्रदेश – २४५२०१
दिल्ली राजधानी क्षेत्र कार्यालय:
समुचित एवं संतुलित विकाश संसथान
ए१-००१, कृष्णा अपरा गार्डन्स, वैभव खंड
इंदिरापुरम (शिप्रा मॉल के सामने)
ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश – २०१०१४ 
दूरभाष: ०१२०-४३२१००१ 

क्या चक्रवर्ती सम्राट की भारतीय परंपरा ही विश्व नेतृत्व संकट का समाधान है?

प्रस्तावना
जब परिवार और स्थानीय समाज बचेगा तभी व्यक्ति का अस्तित्व सुरक्षित एवं संवर्धित हो सकता है.  जब देश सुरक्षित एवं समृद्ध होगा तभी परिवार बचेगा. सामान्यतः आधुनिक काल में हमारी यह मान्यता रही है. इस दृष्टि से व्यक्तिवाद एवं राष्ट्रवाद के दौर में हमारा ध्यान परिवार, स्थानीय समाज और देश तक सीमित रहा है.
परन्तु गौर से देखें तो वास्तविकता कुछ और ही दर्शाती है. विश्व के अनेक देशों के विचारकों से पिछले एक दशक से हो रही बातचीत के आधार पर यह पुष्ट है कि पर्यावरण संकट, परमाणु अस्त्र की होड़ एवं विभिन्न देशों के बीच बढ़ रहे आपसी तनाव एवं वैमनस्य से विनाशकारी परमाणु युद्ध का संकट एवं अंधाधुंध औद्योगीकरण एवं आर्थिक साम्राज्यवाद की होड़ में जल, जंगल, जमीन जन एवं जानवर के संसाधनों का तेजी से विलोप आज और आने वाले समय के लिए स्पष्ट संकेत कर रहा है. यदि विश्व सुरक्षित, परस्पर सुव्यवस्थित  एवं शांत होगा तभी स्थानीय समाज भी सुरक्षित, सुखी और संपन्न रह सकता है. ताजे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि विश्व की सबसे शक्तिशाली सामरिक शक्तियों – अमेरिका, रूस एवं चीन के आपसी संबंधों में उबाल आ रहा है तथा सीरिया, इराक, उत्तरी कोरिया जैसे कई क्षेत्रों में तनाव की स्थिति बनी हुयी है.
ऐसी स्थिति में सदियों से विश्व गुरु का दायित्व उठाने वाले भारत का क्या दायित्व है?

स्पष्ट है की १९४७ में भारत की अधकचरी स्वतंत्रता एवं थोपे-थापे गए उपनिवेशवादी संविधान की अनेक विसंगतियों एवं विरोधाभासों के बोझ से दबी, कुचली और अधमरी-सी आधुनिक इंडिया नामक राष्ट्र-राज्य का नेतृत्व एवं इसकी भ्रष्ट शासन प्रणाली भारत के विश्व गुरु के दायित्व के निर्वाहन करने में पूर्णतया असक्षम है. उलटे यह इंडिया सरकार, भारतीय समाज के चंद पूंजीपति वर्ग तथा विदेशी ताकतों के चंगुल में आकर कुपोषण, भुखमरी, आर्थिक विषमता, बेरोजगारी में विश्व समुदाय के सभी देशों में अंतिम पायदानों पर जूझते एवं शिक्षा, स्वास्थ्य एवं न्याय व्यवस्था के गिरते स्तर के बावजूद, अभी भी सामान्य जनता का शोषण कर रही है. इतना होने के बावजूद भी आज भी यह सच है कि भारत की मनीषा शक्ति जीवित है और इतनी भारी अंदरूनी चुनौतियों से जूझते हुए भी यह सदियों के ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर इसमें भारत एवं विश्व के दिशाहीन शासन तंत्र के शोधन में सक्षम है.

विडम्बना यह है कि आधुनिक भारत यानी इंडिया की सीमाओं में कुंठित होने के बजाय विश्व पटल पर अपने खोयी हुयी पहचान, सम्मान और गौरव को स्थापित करना होगा और यह राष्ट्रवाद के संकीर्ण एवं संकुचित मर्यादाओं को तोड़ना होगा. इसके लिए उपयुक्त मंच संयुक्त राष्ट्र महासंघ एवं विश्व स्तरीय मेधा शक्ति है जो भारत से निकल कर विश्व के अनेक भागों में फैली हुयी है.

ऐसे में हमें विश्व की वर्त्तमान परिस्थिति का समग्रता एवं सम्पूर्णता से आकलन करते हुए विकल्पों को तलाशने की पुरजोर आवश्यकता है. इस कड़ी में सबसे पहले भारतीय परंपरा में राजनीति शब्द को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है ताकि इंडिया के भ्रष्ट, धूर्त एवं शोषणकारी आधुनिक राजनेताओं के व्यवहार से जन-सामान्य एक बार फिर से राजनीति को सम्मान एवं गौरव की दृष्टि से देख सके.

राजनीति क्या है?

सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवापरायण और स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की सुखद संरचना राजनीति है. राजधर्म, दंडनीति, तथा अर्थशास्त्र राजनीति का ही नामांतर है.
महाभारत, मत्स्यपुराण, मार्कण्डेयपुराण एवं अग्निपुराणादि के अनुसार धर्मनियन्त्रित, पक्षपातविहीन, शोषणविनिर्मुक्त, सर्वहितप्रद शासनतंत्र की स्थापना के लिए सनातन संस्कृति के अनुरूप संविधान और उसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है.
सनातन संस्कृति में आस्थान्वित महानुभाव इसका अनुशीलन कर संपूर्ण विश्व के नेतृत्व एवं शासन की संरचना में स्वस्थ भूमिका प्रस्तुत करें.
भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार एवं विश्व की सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र महासंघ के तत्वाधान में उसकी महासभा द्वारा २००७ में पारित घोषणा पत्र United Nations Declaration for Rights of Indigenous People के अंतर्गत भारत के मूल निवासियों को यह अधिकार प्राप्त है कि वे चक्रवर्ती सम्राट के पद को पुनः स्थापित कर सकते हैं. इस से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र के इस घोषणा पत्र में जिसमें भारत सरकार भी हस्ताक्षरकर्ता है इस प्रकार से हैं:

अनुच्छेद 3

आदिवासियों को स्वाधीनता का अधिकार है। इस अधिकार के तहत वे स्वतंत्र रूप से अपने राजनीतिक स्थिति तय कर सकते हैं एवं अपने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं।

अनुच्छेद 4

आदिवासियों को उनके आंतरिक और स्थानीय मामलों में एवं उनकी वित्तीय व्यवस्था के लिए, स्वायत्तता या स्वशासन का अधिकार है।

अनुच्छेद 5

आदिवासियों को, उनके विशेष राजनीतिक, कानूनी, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थानों को बनाए रखने और मजबूत करने का अधिकार है. इसके साथ साथ, यदि वे चाहें तो (वर्त्तमान) राज्य के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी पूरी सहभागिता कर सकते हैं।

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चक्रवर्ती सम्राट कौन और क्या होता है?

पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे :- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।

इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। इस भरत खंड के भी नौ खंड थे-  इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।यह भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमामान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।

इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे।

‘चक्रवर्ती’ शब्द संस्कृत के ‘चक्र’ अर्थात पहिया और ‘वर्ती’ अर्थात घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार ‘चक्रवर्ती’ एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर समय घूमता रहता हो और जिसके रथ को रोकने का कोई साहस न कर पाता है।
जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन माना लिया जाएगा। जम्बूद्वीप और भारत खंड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे ‘चक्रवर्ती’ लगाया जाता है, जैसे वैवस्वत मनु, मान्धाता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरीशचन्द्र, सुदास, रावण, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही ‘चक्रवर्ती’ कहा जाता था लेकिन कालांतर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बांधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।

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आज की परिस्थिति में चक्रवर्ती सम्राट को फिर से विश्व शासन का दायित्व स्वीकार करना होगा और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के मंच पर वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व को पुष्ट करना होगा ताकि सम्पूर्ण विश्व चक्रवर्ती सम्राट के नेतृत्व को स्वीकार कर सके. इसके लिए उसे तर्कशास्त्र, धर्मशास्त्र एवं दण्डनीति में निपुण होने की आवश्यकता है ताकि वह साम, दान, दंड एवं भेद के प्रयोग से पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोते हुए सुशासन कर सके और उसपर पर्यावरण के विनाश, परमाणु युद्ध, अतिभोगिता, प्रदूषित एवं विषैली जीवनशैली को फैलाने वाले आर्थिक साम्राज्यवाद से उत्पन्न संकटों से विश्व को उबार सके और शान्ति, समृद्धि, समरसता एवं खुशहाली के राह पर अग्रसर कर सके.

इस प्रस्तावना पर आप सबके विचार एवं सुझाव आमंत्रित हैं एवं १६ मार्च, २०१८ को होने वाले विश्वव्यापी अभियान के भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित होने वाले प्रारम्भिक संगोष्ठी में आप सबका हार्दिक स्वागत है.

सन्दर्भ:

१. व्लादिमीर पुतिन: अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था ‘स्वयं का भक्षण कर रहा है’
https://www.cnn.com/2018/03/07/europe/putin-trump-us-political-system-intl/index.html
२. क्या अमेरिका चीन के साथ परमाणु युद्ध की तैयारी कर रहा है?
http://nationalinterest.org/blog/the-buzz/america-preparing-nuclear-war-china-24753
३.  वैज्ञानिकों ने जेट स्ट्रीम को स्थानांतरित करने पर ‘वैश्विक जलवायु आपातकाल’ की चेतावनी दी है
http://www.independent.co.uk/news/science/climate-change-emergency-jet-stream-shift-warning-global-warning-extreme-weather-a7111661.html
४.  सीरिया के रासायनिक हमलों के दावों के बीच फ़्रांस के प्रतिक्रिया का खतरा
https://www.aljazeera.com/news/2018/03/syria-video-phosphorous-bomb-attacks-ghouta-180308133727016.html
५.  संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंगीकृत संकल्प-पत्र : आदिवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का घोषणा पत्र 61/295  13 सितम्बर 2007
http://www.un.org/esa/socdev/unpfii/documents/DRIPS_en.pdf
क्रमशः : सहस्र समस्याओं का समग्र समाधान – स्वदेशी से स्वावलम्बन 
संयोजक,

चंद्र विकाश

स्वदेशी विचारक
अध्यक्ष – समुचित एवं संतुलित विकाश संस्थान
इंदिरापुरम, गाजियाबाद -२०१०१४ उत्तर प्रदेश, भारत (इंडिया)
मो: +९१ ९५८२९४१३८२ दूरभाष: +९१ १२० ४३२१००१ 
ईमेल: chandra.vikash@gmail.com