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कृष्ण क्रान्ति – आज के सन्दर्भ में 

आम धारणा है की कृष्ण गोकुल की गोपियों को छेड़ते थे और शरारत में उनकी मटकी भी तोड़ देते थे. वास्तविकता में, इस प्रसंग में एक महत्वपूर्ण सूत्र छिपा है. कृष्ण एक क्रांतिकारी थे जिनके लिए समाज का हित सर्वोपरि था. वे गोपियों द्वारा गाँव का दूध मथुरा ले जा कर बेचने का विरोध करते थे और इस कारण से उनकी मटकी तोड़ देते. उनका मानना था कि गाँव का दूध पहले गाँव के बच्चों, माताओं एवं समस्त गाँव वासियों के लिए है. गाँव की आमदनी के लिए बचे हुए दूध का खोया और घी ही गाँव से बाहर बेचा जाना चाहिये।

यह सूत्र आज के सन्दर्भ में उतना ही महत्वपूर्ण है. श्वेत क्रान्ति के नाम पर डेयरी कम्पनियां गाँव के बच्चों, गर्भवती महिलाओं सहित सभी ग्राम वासियों के हक़  का दूध छीनकर शहरों में बेच रही है. गोचर भूमि के नष्ट होने से, चारे की कीमत में भारी वृद्धि और अनाज एवं अन्य घरेलु आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गौ पालकों को गाँव से बाहर दूध बेचने की मजबूरी होती है।

इसके साथ-साथ दूध में संदिग्ध स्रोतों से प्राप्त मिल्क पाउडर, विष-युक्त सोयाबीन का दूध, यूरिया, डिटर्जेंट, पनीर का पानी जैसी अनेक मिलावटें कर के डेयरी कम्पनियां भारी मुनाफा कर दूध बेचती हैं। इन मिलावटों को लैक्टोमीटर से नहीं पकड़ा जा सकता। आसानी से हर तरफ दूध मिलने से गोचर भूमि की भारी कमी और गौ पालन की अनेक समस्याओं को नज़रंदाज़ किया जा रहा है।

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यदि आज भी हम कृष्ण के क्रांतिकारी विचार का अनुपालन करते हुए गाँव के दूध को गाँव के बाहर बेचने पर प्रतिबन्ध लगने से ना सिर्फ ग्रामवासियों को दूध का भरपूर पोषण मिल सकेगा, गोचर भूमि की कमी और गौपालकों की अनेक समस्याओं के प्रति सरकार और जनमानस का ध्यान लगने से अन्य सभी क्षेत्रों में भी शुद्ध एवं ताज़ा दूध उपलब्ध हो सकेगा. गौर करने लायक है कि अब तक गौचर भूमि के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की जाती रही है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार एक गाय को औसतन १० कि. मि. रोज चलना चाहिये। स्टाल फीडिंग से विष उत्पन्न होता है.

कृष्ण क्रान्ति के इस महत्वपूर्ण सूत्र से कई जुडी हुयी समस्याएं भी हल होंगी। स्थानीय स्तर पर समुचित गोचर भूमि के उपलब्ध होने से गायों को कीटाणुनाशक युक्त चारा, विष-युक्त सोयाबीन और बी टी कपास के बिनौले जैसा विषैला आहार खिलाना भी बंद होगा। कुछ वर्षों पहले हरियाणा क्षेत्र में गायों को बी टी कपास के बिनौले खिलाये जाने से बछियों के कद कुंठित होने और दूध में कमी होने के तथ्य सामने आये परन्तु कंपनियों और डेयरी संस्थानों के मिली भगत से इस खबर को दबा दिया गया. इसी तरह विष-युक्त सोयाबीन से पुरुषों में स्तन उभर आने, कैंसर सहित कई बीमारियों के फैलने के तथ्य सामने आये हैं। सस्ते में डेयरी को दूध बेचकर अपना गुजारा करने को मजबूर गौपालक बछियों को दूध नहीं पिलाते और जबरन दूध निकालने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन भी गायों को देते है. डेयरी की दूध को दूर बेचने के लिए और लम्बे समय तक रखने के लिए चिल्लिंग और पास्चेराइज़ेशन को पोषण नष्ट होने और कैंसर का कारक पाया गया है.

गोचर भूमि की उपलब्धता और ग्राम व्यवस्था के पुनर्स्थापन से गौ पालकों को गाँव से ही उनकी आवश्यकता के अनुसार किसान से अनाज और चारा, कुम्हार से मिटटी के हांडी, कवेलू (खप्पर) और अन्य कारीगरों की वस्तुएं मिल सकेंगी।

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कृष्ण क्रान्ति का यह सूत्र विलुप्त होते गौवंश के संरक्षण एवं संवर्धन को भारी बल देगा. यदि आज का समाज गौवंश एवं गौपालन – और इससे जुडी कौशल, त्याग, साधना और कठिन परिश्रम – का सही मूल्य और मूल्यांकन कर ले तो हम गौ ह्त्या को कानूनी तौर से प्रतिबंधित करने और अन्य वर्गों द्वारा इसका विरोध करने की मौकापरस्त राजनीति से भी बच सकते हैं।

– चन्द्र विकाश गौवंश एवं गौपालन के संरक्षण तथा संवर्धन के राष्ट्रीय अभियान के लिए प्रयासरत हैं। आई आई टी खरगपुर से स्नातक और आई आई एम कलकता से प्रबंधन की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे पिछले डेढ़ दशक से सामाजिक एवं पर्यावरण क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।